मौत के खूँ-ख़्वार पंजों में सिसकती है हयात
आज है इंसानियत की हर अदा सहमी हुई
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इतनी मुद्दत बा'द मिले हो कुछ तो दिल का हाल कहो
आज फिर वक़्त कोई अपनी निशानी माँगे
तुझ से टूटा रब्त तो फिर और क्या रह जाएगा
'शकील' हिज्र के ज़ीनों पे रुक गईं यादें
क्या तुम भी तरीक़ा नया ईजाद करो हो
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की मरे ज़िक्र पर झेंप जाती तो होगी
छोटी सी ये बात सही पर खींचे है ये तूल मियाँ
अक़ब से वार था आख़िर मैं आह क्या करता
ख़याल-ओ-ख़्वाब की अब रहगुज़र में रहता है
रेज़ा रेज़ा जैसे कोई टूट गया है मेरे अंदर