फिर कोई चोट उभरी दिल में कसक सी जागी
यादों की आज शायद पुर्वाई चल रही है
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अहरमन का रक़्स-ए-वहशत हर गली हर मोड़ पर
इतनी मुद्दत बा'द मिले हो कुछ तो दिल का हाल कहो
ये ज़ाद-ए-राह हमेशा सफ़र में रख लेना
ये शबनम फूल तारे चाँदनी में अक्स किस का है
ख़याल-ओ-ख़्वाब की अब रहगुज़र में रहता है
रेज़ा रेज़ा जैसे कोई टूट गया है मेरे अंदर
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की मरे ज़िक्र पर झेंप जाती तो होगी
आज फिर वक़्त कोई अपनी निशानी माँगे
मौत के खूँ-ख़्वार पंजों में सिसकती है हयात
रिश्ता रहा अजीब मिरा ज़िंदगी के साथ
इक तमन्ना है ख़मोशी के कटहरे कितने
छोटी सी ये बात सही पर खींचे है ये तूल मियाँ