रिश्ता रहा अजीब मिरा ज़िंदगी के साथ
चलता हो जैसे कोई किसी अजनबी के साथ
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मौत के खूँ-ख़्वार पंजों में सिसकती है हयात
छोटी सी ये बात सही पर खींचे है ये तूल मियाँ
उस से बछड़ा तो यूँ लगा जैसे
क्या तुम भी तरीक़ा नया ईजाद करो हो
फिर कोई चोट उभरी दिल में कसक सी जागी
इतनी मुद्दत बा'द मिले हो कुछ तो दिल का हाल कहो
उस से भी ऐसी ख़ता हो ये ज़रूरी तो नहीं
'शकील' हिज्र के ज़ीनों पे रुक गईं यादें
ख़याल-ओ-ख़्वाब की अब रहगुज़र में रहता है
बैठे रहेंगे थाम के कब तक यूँ ख़ाली पैमाने लोग
अक़ब से वार था आख़िर मैं आह क्या करता