गर्द-ए-सफ़र के साथ था वाबस्ता इंतिज़ार
अब तो कहीं ग़ुबार भी बाक़ी नहीं रहा
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रिश्ता रहा अजीब मिरा ज़िंदगी के साथ
कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की मरे ज़िक्र पर झेंप जाती तो होगी
किन हवालों में आ के उलझा हूँ
अहरमन का रक़्स-ए-वहशत हर गली हर मोड़ पर
मैं कर्ब-ए-बुत-तराशी-ए-आज़र में क़ैद था
क्या तुम भी तरीक़ा नया ईजाद करो हो
आज फिर वक़्त कोई अपनी निशानी माँगे
'शकील' हिज्र के ज़ीनों पे रुक गईं यादें
रेज़ा रेज़ा जैसे कोई टूट गया है मेरे अंदर
मौत के खूँ-ख़्वार पंजों में सिसकती है हयात
ये शबनम फूल तारे चाँदनी में अक्स किस का है