नहीं तुम मानते मेरा कहा जी
मुझ से बीमार है मिरा ज़ालिम
हमारे मय-कदे में हैं जो कुछ की निय्यतें ज़ाहिर
हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के
आरज़ू है मैं रखूँ तेरे क़दम पर गर जबीं
हवा भी इश्क़ की लगने न देता मैं उसे हरगिज़
तेरी आँखें बड़ी सी प्यारी हैं
कई दिन हो गए या-रब नहीं देखा है यार अपना
ले मेरी ख़बर चश्म मिरे यार की क्यूँ-कर
क़िस्मत में क्या है देखें जीते बचें कि मर जाएँ
यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह
तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश