जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-नगर भी नहीं
ख़िरद की तरह कम-नज़र भी नहीं
किसी राहज़न का ख़तर भी नहीं
कि दामन में गर्द-ए-सफ़र भी नहीं
ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब
ग़म-ए-ज़िंदगी से मफ़र भी नहीं
नज़र मो'तबर है ख़बर मो'तबर
मगर इस क़दर मो'तबर भी नहीं
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Wasi Shah
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(490) Peoples Rate This
क़ुसूर इश्क़ में ज़ाहिर है सब हमारा था
वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर
सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला
किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
बस्ती में कमी किस चीज़ की है पत्थर भी बहुत शीशे भी बहुत
बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'
ये चार दिन की रिफ़ाक़त भी कम नहीं ऐ दोस्त
मंज़िलें राह में थीं नक़्श-ए-क़दम की सूरत
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
हम एक उम्र जले शम-ए-रहगुज़र की तरह
मंज़िलों से बेगाना आज भी सफ़र मेरा
शौक़ का तक़ाज़ा है शरह-ए-आरज़ू कीजे