अजनबी रास्तों पर भटकते रहे
आरज़ूओं का इक क़ाफ़िला और मैं
Anwar Masood
Gulzar
Wasi Shah
Parveen Shakir
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Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
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ये माना वो शजर सूखा बहुत है
ख़ता मैं ने कोई भारी नहीं की
देर तक मिल के रोते रहे राह में
बला से मर्तबे ऊँचे न रखना
अगर फूलों की ख़्वाहिश है तो सुन लो
दश्त-ए-तन्हाई बादल हवा और मैं
फ़रिश्तों में भी जिस के तज़्किरे हैं
तकोगे राह सहारों की तुम मियाँ कब तक
मिरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने
जहान-ए-दिल में सन्नाटा बहुत है
पड़ोसी के मकाँ में छत नहीं है