देर तक मिल के रोते रहे राह में
उन से बढ़ता हुआ फ़ासला और मैं
Jaun Eliya
Gulzar
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(618) Peoples Rate This
हम को ख़बर है शहर में उस के संग-ए-मलामत मिलते हैं
यादों की क़िंदील जलाना कितना अच्छा लगता है
अजनबी रास्तों पर भटकते रहे
मिरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने
तकोगे राह सहारों की तुम मियाँ कब तक
बला से मर्तबे ऊँचे न रखना
पड़ोसी के मकाँ में छत नहीं है
अगर फूलों की ख़्वाहिश है तो सुन लो
दश्त-ए-तन्हाई बादल हवा और मैं
जहान-ए-दिल में सन्नाटा बहुत है
फ़रिश्तों में भी जिस के तज़्किरे हैं