अगर फूलों की ख़्वाहिश है तो सुन लो
किसी की राह में काँटे न रखना
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तकोगे राह सहारों की तुम मियाँ कब तक
मिरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने
ये माना वो शजर सूखा बहुत है
अजनबी रास्तों पर भटकते रहे
पड़ोसी के मकाँ में छत नहीं है
देर तक मिल के रोते रहे राह में
ख़ता मैं ने कोई भारी नहीं की
दश्त-ए-तन्हाई बादल हवा और मैं
यादों की क़िंदील जलाना कितना अच्छा लगता है
फ़रिश्तों में भी जिस के तज़्किरे हैं
बला से मर्तबे ऊँचे न रखना