मिरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने
किसी ने मेरी ग़म-ख़्वारी नहीं की
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हम को ख़बर है शहर में उस के संग-ए-मलामत मिलते हैं
ये माना वो शजर सूखा बहुत है
देर तक मिल के रोते रहे राह में
अगर फूलों की ख़्वाहिश है तो सुन लो
फ़रिश्तों में भी जिस के तज़्किरे हैं
पड़ोसी के मकाँ में छत नहीं है
दश्त-ए-तन्हाई बादल हवा और मैं
यादों की क़िंदील जलाना कितना अच्छा लगता है
ख़ता मैं ने कोई भारी नहीं की
अजनबी रास्तों पर भटकते रहे
बला से मर्तबे ऊँचे न रखना