मैं जिन गलियों में पैहम बरसर-ए-गर्दिश रहा हूँ
मैं उन गलियों में इतना ख़ार पहले कब हुआ था
Habib Jalib
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(536) Peoples Rate This
ये तय हुआ है कि शेर ओ अदब के पैमाने
सतह-ए-दरिया का ये सफ़्फ़ाक सुकूँ है धोका
मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है
इसे मैं और ये मेरा असा ही तय करेगा
फिर उस की याद ने दस्तक दिल-ए-हज़ीं पर दी
बहार अब के जो गुज़री तो फिर न आएगी
तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए
हम अपने आप से कितने ज़ियादा हैं
मह-ओ-अंजुम ने क़बा की तो तुम्हारे लिए की
मैं कहाँ और कहाँ शाएरी मैं ने तो फ़क़त