ये तय हुआ है कि शेर ओ अदब के पैमाने
हमारे शहर का इक यक-फ़ना ही तय करेगा
Gulzar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(498) Peoples Rate This
हम अपने आप से कितने ज़ियादा हैं
सतह-ए-दरिया का ये सफ़्फ़ाक सुकूँ है धोका
बहार अब के जो गुज़री तो फिर न आएगी
फिर उस की याद ने दस्तक दिल-ए-हज़ीं पर दी
इसे मैं और ये मेरा असा ही तय करेगा
मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है
चमन इतना ख़िज़ाँ-आसार पहले कब हुआ था
तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए
बहुत से सैल-ए-हवादिस की ज़द पे बह गए हैं
ला-यख़ुल
मैं जिन गलियों में पैहम बरसर-ए-गर्दिश रहा हूँ