तुझे मैं अपना नहीं समझता इसी लिए तो
ज़माने तुझ से मैं कोई शिकवा नहीं करूँगा
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वो कम-सुख़न न था पर बात सोच कर करता
बहार आने की उम्मीद के ख़ुमार में था
हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं
मिरी तवज्जोह फ़क़त मिरे काम पर रहेगी
हिज्र बख़्शा कभी विसाल दिया
फिर जो करने लगा है तू व'अदा
मिरा बातिन मुझे हर पल नई दुनिया दिखाता है
मकाँ से होगा कभी ला-मकान से होगा
मोती नहीं हूँ रेत का ज़र्रा तो मैं भी हूँ
ये लोग करते हैं मंसूब जो बयाँ तुझ से