सूरज के उस जानिब बसने वाले लोग
अक्सर हम को पास बुलाया करते हैं
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(545) Peoples Rate This
तुझे मैं अपना नहीं समझता इसी लिए तो
मैं ने बख़्श दी तिरी क्यूँ ख़ता तुझे इल्म है
नहीं उड़ाऊँगा ख़ाक रोया नहीं करूँगा
ये लोग करते हैं मंसूब जो बयाँ तुझ से
हिज्र बख़्शा कभी विसाल दिया
मिरी तवज्जोह फ़क़त मिरे काम पर रहेगी
मुझ को कहानियाँ न सुना शहर को बचा
बहाऊँगा न मैं आँसू न मुस्कराउँगा
तुम कोई इस से तवक़्क़ो' न लगाना मरे दोस्त
मोती नहीं हूँ रेत का ज़र्रा तो मैं भी हूँ
मिरा बातिन मुझे हर पल नई दुनिया दिखाता है
वफ़ा का ज़िक्र छिड़ा था कि रात बीत गई