किसी का मिलना, बिछड़ना और एक दो बातें
तमाम सिलसिला ज़ेब-ए-क़लम न कर पाया
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Gulzar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(572) Peoples Rate This
ख़िश्त-ए-जाँ दरमियान लाने में
फिर मिरा ध्यान ज्ञान टूट गया
देख कर तुम को हैरती हूँ मैं
मैं चाँद भेज रहा हूँ कि तुम को देख आए
आज फिर चाँद देर से निकला
ग़म-ए-जहाँ में ग़म-ए-यार ज़म न कर पाया
माल-ओ-ज़र की क़द्र क्या ख़ून-ए-जिगर के सामने
भेज कर शहर हारती है मुझे
माल-ओ-ज़र की क़द्र क्या? ख़ून-ए-जिगर के सामने
शराब शहर में नीलाम हो गई होगी