ग़म के रिश्तों को कभी तोड़ न देना 'वाली'
ग़म ख़याल-ए-दिल-ए-ना-शाद बहुत करता है
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हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं
भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है
तुझ से बिछड़ के यूँ तो बहुत जी उदास है
मौज-ए-हवा आब-ए-रवाँ और ये ज़मीन ओ आसमाँ
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम
आरज़ू ले के कोई घर से निकलते क्यूँ हो
इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना
क्या हिज्र में जी निढाल करना
कभी भूले से भी अब याद भी आती नहीं जिन की
हम हार गए तुम जीत गए हम ने खोया तुम ने पाया
जिन की यादें हैं अभी दिल में निशानी की तरह