हैरान है क्यूँ राज़-ए-बक़ा मुझ से पूछ
मैं ज़िंदा-ए-जावेद हूँ आ मुझ से पूछ
मरते हैं कहीं दिलों से बसने वाले
जीना है तो मौत की दवा मुझ से पूछ
Parveen Shakir
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पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
झाँकने ताकने का वक़्त गया
बादल को लगी खिलते बरसते कुछ देर
परवाने कहाँ मरते बिछड़ते पहुँचे
मंज़िल का पता है न ठिकाना मा'लूम
मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
इल्म क्या इल्म की हक़ीक़त क्या
वहशत थी हम थे साया-ए-दीवार-ए-यार था
हाँ ऐ दिल-ए-ईज़ा-तलब आराम न ले
ज़ंजीर से होने का नहीं दिल भारी
कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा