जहाँ से कुछ न मिले हुस्न-ए-माज़रत के सिवा
ये आरज़ू उसी चौखट पे शब गुज़ारती है
Anwar Masood
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1095) Peoples Rate This
झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'
दिन चढ़े होना न होना एक सा रह जाएगा
अगर इस खेल में अब वो भी शामिल होने वाला है
लगाता फिर रहा हूँ आशिक़ों पर कुफ़्र के फ़तवे
हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत
अगर कभी तिरे आज़ार से निकलता हूँ
जिस ने नफ़रत ही मुझे दी न 'ज़फ़र' प्यार दिया
मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में
बस एक बार किसी ने गले लगाया था
यूँ तो किस चीज़ की कमी है
बात मुझ में भी कुछ इस तरह की होगी जो यहाँ
दिल से बाहर निकल आना मिरी मजबूरी है