आईना-ए-ख़याल तिरे रू-ब-रू करें
आईना-ए-ख़याल तिरे रू-ब-रू करें
जितनी शिकायतें हैं सभी दू-बदू करें
जलने लगा है अब तो ये साँसों का पैरहन
मायूसियों की आग से कब तक रफ़ू करें
अहबाब के ख़ुलूस में अब वो कशिश कहाँ
फिर क्या मिलें किसी से कोई आरज़ू करें
अहल-ए-जुनूँ के हक़ में है हुक्म-ए-ख़ुदा यही
तब्लीग़-ए-दर्द हर्फ़-ओ-सदा कू-ब-कू करें
अर्ज़-ओ-समाँ के बीच मुअ'ल्लक़ है क्यूँ दुआ
'ज़ाकिर' चलो कि तूर पे कुछ गुफ़्तुगू करें
(981) Peoples Rate This