ज़ेब ग़ौरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ेब ग़ौरी (page 4)

ज़ेब ग़ौरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ेब ग़ौरी (page 4)
नामज़ेब ग़ौरी
अंग्रेज़ी नामZeb Ghauri
जन्म की तारीख1928
मौत की तिथि1985
जन्म स्थानKanpur

ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआ

ख़ाक आईना दिखाती है कि पहचान में आ

कब तलक ये शाला-ए-बे-रंग मंज़र देखिए

झुके हुए पेड़ों के तनों पर छाप है चंचल धारे की

जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है

हो चुके गुम सारे ख़द्द-ओ-ख़ाल मंज़र और मैं

हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता है

है सदफ़ गौहर से ख़ाली रौशनी क्यूँकर मिले

है बहुत ताक़ वो बेदाद में डर है ये भी

गो मिरी हर साँस इक पेगाज़-ए-सरमस्ती रही

ग़ार के मुँह से ये चट्टान हटाने के लिए

गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में

गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत

इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी

एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होती

दिन तिरी याद में ढल जाता है आँसू की तरह

दिन है बे-कैफ़ बे-गुनाहों सा

ढला न संग के पैकर में यार किस का था

बुझते सूरज ने लिया फिर ये सँभाला कैसा

बुझ कर भी शो'ला दाम-ए-हवा में असीर है

भड़कती आग है शो'लों में हाथ डाले कौन

बे-कराँ दश्त-ए-बे-सदा मेरे

बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है

बस एक पर्दा-ए-इग़माज़ था कफ़न उस का

बहार कौन सी तुझ में जमाल-ए-यार न थी

और गुलों का काम नहीं होता कोई

अक्स-ए-फ़लक पर आईना है रौशन आब ज़ख़ीरों का

आलम से फ़ुज़ूँ तेरा आलम नज़र आता है

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