तलाश एक बहाना था ख़ाक उड़ाने का
पता चला कि हमें जुस्तुजू-ए-यार न थी
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बस एक पर्दा-ए-इग़माज़ था कफ़न उस का
उस की राहों में पड़ा मैं भी हूँ कब से लेकिन
हो चुके गुम सारे ख़द्द-ओ-ख़ाल मंज़र और मैं
किस ने सहरा में मिरे वास्ते रक्खी है ये छाँव
कहीं पता न लगा फिर वजूद का मेरे
सेहन-ए-चमन में जाना मेरा और फ़ज़ा में बिखर जाना
एक झोंका हवा का आया 'ज़ेब'
मौज-ए-रेग सराब-सहरा कैसे बनती है
संग-ए-बेहिस से उठी मौज-ए-सियह-ताब कोई
उस के क़ुर्ब के सारे ही आसार लगे
महकती ज़ुल्फ़ों से ख़ोशे गुलों के छूट गिरे
मरने का सुख जीने की आसानी दे