मैं आफ़्ताब को कैसे दिखाऊँ तारीकी
तुझे मैं कैसे बताऊँ कि क्या है तन्हाई
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तसलसुल
आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो
कितनी देर और है ये बज़्म-ए-तरब-नाक न कह
बुरा न मान 'ज़िया' उस की साफ़-गोई का
बड़ा शहर
अब इस का चारा ही क्या कि अपनी तलब ही ला-इंतिहा थी वर्ना
तुलूअ'
तेरा ग़म भी न हो तो क्या जीना
तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है
इज़हार ना-रसा सही वो सूरत-ए-जमाल
अजब कशाकश-ए-बीम-ओ-रजा है तन्हाई
अधूरी