Love Poetry of Abdul Wahab Yakro

Love Poetry of Abdul Wahab Yakro
नामअब्दुल वहाब यकरू
अंग्रेज़ी नामAbdul Wahab Yakro

इश्क़ के फ़न नीं हूँ मैं अवधूत

इश्क़ का तिफ़्ल गिर ज़मीं ऊपर

तुझ क़द की अदा सर्व-ए-गुलिस्ताँ सीं कहूँगा

सुनाया यार नीं आ कर दो तारा

लोग हर-चंद पंद करते हैं

क्यूँके करे न शहर को रो रो उजाड़ चश्म

ख़ुश-क़दाँ जब ख़िराम करते हैं

कब करे क़स्द यार आवन का

जब करें मुझ तिरे का ख़्याल अँखियाँ

इश्क़ है इश्क़-ए-पाक-बाज़ी का

गुदाज़-ए-आतिश-ए-ग़म सीं हुई हैं बावली अँखियाँ

गल को शर्मिंदा कर ऐ शोख़ गुलिस्तान में आ

अगर वो गुल-बदन दरिया नहाने बे-हिजाब आवे

अगर नहीं क़स्द ऐ ज़ालिम मिरे दिल के सताने का

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