Ghazals of Abdul Wahab Yakro

Ghazals of Abdul Wahab Yakro
नामअब्दुल वहाब यकरू
अंग्रेज़ी नामAbdul Wahab Yakro

तुझ क़द की अदा सर्व-ए-गुलिस्ताँ सीं कहूँगा

तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है

सुनाया यार नीं आ कर दो तारा

शराब लाल-ए-लब-ए-दिल-बराँ है मुझ कूँ मुबाह

मुझ सीं और दिलरुबा सीं है अन-बन

मिरा दिल मुब्तला है झाँवली का

मस्त अँखियाँ का देख दुम्बाला

लोग हर-चंद पंद करते हैं

क्यूँके करे न शहर को रो रो उजाड़ चश्म

ख़ुश-क़दाँ जब ख़िराम करते हैं

कब करे क़स्द यार आवन का

जब करें मुझ तिरे का ख़्याल अँखियाँ

इश्क़ है इश्क़-ए-पाक-बाज़ी का

इस तरह रुख़ फेरते हो सुनते ही बोसे की बात

गुदाज़-ए-आतिश-ए-ग़म सीं हुई हैं बावली अँखियाँ

गल को शर्मिंदा कर ऐ शोख़ गुलिस्तान में आ

अगर वो गुल-बदन दरिया नहाने बे-हिजाब आवे

अगर नहीं क़स्द ऐ ज़ालिम मिरे दिल के सताने का

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