तिरे हाथों में है तिरी क़िस्मत
तिरी इज़्ज़त तिरे ही काम से है
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मगर ये तीरगी जाने का नाम लेती नहीं
जाने किस सम्त को भटका साया
जब से दरिया में है तुग़्यानी बहुत
हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूप
हाथ में माहताब हो जैसे
इस ए'तिबार पे काटी है हम ने उम्र-ए-अज़ीज़
कोई मंज़र भी नहीं अच्छा लगा
सब अपने अपने तरीक़े से भीक माँगते हैं
मैं बारिशों में बहुत भीगता रहा 'आबिद'
हम किसी सुल्ताँ के ताबे नहीं 'आबिद-वदूद'
शहर ये सायों का है इस में बनी-आदम कहाँ
सर पर गिरे मकान का मलबा ही रख लिया