वो शोर होता है ख़्वाबों में 'आफ़्ताब' 'हुसैन'
कि ख़ुद को नींद से बेदार करने लगता हूँ
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किसी नज़र ने मुझे जाम पर लगाया हुआ है
कभी जो रास्ता हमवार करने लगता हूँ
फ़िराक़ मौसम की चिलमनों से विसाल लम्हे चमक उठेंगे
मिलता है आदमी ही मुझे हर मक़ाम पर
अभी है हुस्न में हुस्न-ए-नज़र की कार-फ़रमाई
कुछ और तरह की मुश्किल में डालने के लिए
लोग किस किस तरह से ज़िंदा हैं
हुस्न वालों में कोई ऐसा हो
जो कुछ निगाह में है हक़ीक़त में वो नहीं
वो यूँ मिला था कि जैसे कभी न बिछड़ेगा
करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है