मिलता है आदमी ही मुझे हर मक़ाम पर
और मैं हूँ आदमी की तलब से भरा हुआ
Anwar Masood
Parveen Shakir
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(726) Peoples Rate This
किन मंज़रों में मुझ को महकना था 'आफ़्ताब'
दे रहे हैं जिस को तोपों की सलामी आदमी
हर एक गाम उलझता हूँ अपने आप से मैं
कुछ और तरह की मुश्किल में डालने के लिए
अपना दीवाना बना कर ले जाए
ये सोच कर भी तो उस से निबाह हो न सका
इस अँधेरे में जो थोड़ी रौशनी मौजूद है
अभी है हुस्न में हुस्न-ए-नज़र की कार-फ़रमाई
गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में
बस एक बात की उस को ख़बर ज़रूरी है
दिल भी आप को भूल चुका है