पते की बात भी मुँह से निकल ही जाती है
कभी कभी कोई झूटी ख़बर बनाते हुए
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कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ
ज़रा सी देर को चमका था वो सितारा कहीं
देखे कोई तअल्लुक़-ए-ख़ातिर के रंग भी
दे रहे हैं जिस को तोपों की सलामी आदमी
गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में
क्या ख़बर मेरे ही सीने में पड़ी सोती हो
हाल हमारा पूछने वाले
मक़ाम-ए-शौक़ से आगे भी इक रस्ता निकलता है
दिल भी आप को भूल चुका है
कुछ रब्त-ए-ख़ास अस्ल का ज़ाहिर के साथ है
घड़ी घड़ी उसे रोको घड़ी घड़ी समझाओ
हुस्न वालों में कोई ऐसा हो