वो सर से पाँव तक है ग़ज़ब से भरा हुआ
मैं भी हूँ आज जोश-ए-तलब से भरा हुआ
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दिल-ए-मुज़्तर वफ़ा के बाब में ये जल्द-बाज़ी क्या
कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ
कब तक साथ निभाता आख़िर
चलो कहीं पे तअल्लुक़ की कोई शक्ल तो हो
करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है
अपने ही दम से चराग़ाँ है वगरना 'आफ़्ताब'
किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भी
पते की बात भी मुँह से निकल ही जाती है
अना को बाँधता रहता हूँ अपने शे'रों में
लोग किस किस तरह से ज़िंदा हैं
गए मंज़रों से ये क्या उड़ा है निगाह में
ज़रा सी देर को चमका था वो सितारा कहीं