चलो कहीं पे तअल्लुक़ की कोई शक्ल तो हो
किसी के दिल में किसी की कमी ग़नीमत है
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ज़रा सी देर को चमका था वो सितारा कहीं
ज़रा जो फ़ुर्सत-ए-नज़्ज़ारगी मयस्सर हो
हर फूल है हवाओं के रुख़ पर खिला हुआ
वो शोर होता है ख़्वाबों में 'आफ़्ताब' 'हुसैन'
क़दम क़दम पे किसी इम्तिहाँ की ज़द में है
कमी रखता हूँ अपने काम की तकमील में
हर एक गाम उलझता हूँ अपने आप से मैं
हुस्न वालों में कोई ऐसा हो
वो यूँ मिला था कि जैसे कभी न बिछड़ेगा
ये सोच कर भी तो उस से निबाह हो न सका
दे रहे हैं जिस को तोपों की सलामी आदमी
मिलता है आदमी ही मुझे हर मक़ाम पर