जिस को मेरी हालत का एहसास नहीं
उस को दिल का हाल सुना कर रोना क्या
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मुश्किल था बहुत मेरे लिए तर्क-ए-तअल्लुक़
दीवारों में दर होता तो अच्छा था
जब अपनों से दूर पराए देस में रहना पड़ता है
इस तरह सताया है परेशान किया है
मैं ख़ाक में मिले हुए गुलाब देखता रहा
किसी ने मुझ से कह दिया था ज़िंदगी पे ग़ौर कर
ऐ मेरे मुसव्विर नहीं ये मैं तो नहीं हूँ
रंग आ जाते मुट्ठी में जुगनू बन कर
ग़म का मौसम बीत गया सो रोना क्या