Ghazals of Afzal Naved

Ghazals of Afzal Naved
नामअफ़ज़ाल नवेद
अंग्रेज़ी नामAfzal Naved
जन्म स्थानCanada

सुबू उठाऊँ तो पीने के बीच खुलती है

रह-ए-सुलूक में बल डालने पे रहता है

पानी शजर पे फूल बना देखता रहा

न रोना रह गया बाक़ी न हँसना रह गया बाक़ी

मकान-ए-ख़्वाब में जंगल की बास रहने लगी

ख़ाली हुआ गिलास नशा सर में आ गया

जंग से जंगल बना जंगल से मैं निकला नहीं

हम ने कुछ पँख जो दालान में रख छोड़े हैं

एक उजली उमंग उड़ाई थी

इक धन को एक धन से अलग कर लूँ और गाऊँ

दिखाई दे कि शुआ-ए-बसीर खींचता हूँ

धनक में सर थे तिरी शाल के चुराए हुए

बाग़ क्या क्या शजर दिखाते हैं

अपने ही तले आई ज़मीनों से निकल कर

आँचल में नज़र आती हैं कुछ और सी आँखें

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