शाख़-ए-गुल झूम के गुलज़ार में सीधी जो हुई
फिर गया आँख में नक़्शा तिरी अंगड़ाई का
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इश्क़ हो जाएगा मेरी दास्तान-ए-इश्क़ से
रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं
इश्क़-ए-दहन में गुज़री है क्या कुछ न पूछिए
हुए ऐसे ब-दिल तिरे शेफ़्ता हम दिल-ओ-जाँ को हमेशा निसार किया
जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था
दुखा देते हो तुम दिल को तो बढ़ जाता है दिल मेरा
दरपेश अजल है गंज-ए-शहीदाँ ख़रिदिए
सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं
सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे
बुलबुल का दिल ख़िज़ाँ के सदमे से हिल रहा है
परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं