तेज़ कब तक होगी कब तक बाढ़ रक्खी जाएगी
अब तो ऐ क़ातिल तिरी शमशीर आधी रह गई
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तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए
जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का
दो वक़्त निकलने लगी लैला की सवारी
शाख़-ए-गुल झूम के गुलज़ार में सीधी जो हुई
घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई
क्या बुझाएगा मिरे दिल की लगी वो शोला-रू
तेरे आलम का यार क्या कहना
रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है
जवानी आई मुराद पर जब उमंग जाती रही बशर की
तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम
दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ
कभी जो यार को देखा तो ख़्वाब में देखा