कभी जो यार को देखा तो ख़्वाब में देखा
मिरी मुराद भी आई तो मुस्तआर आई
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तेरे आलम का यार क्या कहना
लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे
चाहिएँ मुझ को नहीं ज़र्रीं क़फ़स की पुतलियाँ
तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम
दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ
घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई
दरपेश अजल है गंज-ए-शहीदाँ ख़रिदिए
दिल को लटका लिया है गेसू में
दिल में आमद आमद उस पर्दा-नशीं की जब सुनी
ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँचेगा क्या कोई
रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं
क्या ख़ुदा हैं जो बुलाएँ तो वो आ ही न सकें