दो वक़्त निकलने लगी लैला की सवारी
दिलचस्प हुआ क़ैस के रहने से बन ऐसा
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Habib Jalib
Parveen Shakir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(729) Peoples Rate This
नहीं करते वो बातें आलम-ए-रूया में भी हम से
तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए
हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे
देखने भी जो वो जाते हैं किसी घायल को
वो रंगत तू ने ऐ गुल-रू निकाली
फ़स्ल-ए-गुल में है इरादा सू-ए-सहरा अपना
बे-वफ़ा तुम बा-वफ़ा मैं देखिए होता है क्या
इश्क़-बाज़ों की कहीं दुनिया में शुनवाई नहीं
लिक्खा है जो तक़दीर में होगा वही ऐ दिल
कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
पाया तिरे कुश्तों ने जो मैदान-ए-बयाबाँ