क्या बुझाएगा मिरे दिल की लगी वो शोला-रू
दौड़ता है जो लगा के आग पानी के लिए
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परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं
जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था
इलाही ख़ैर जो शर वाँ नहीं तो याँ भी नहीं
हुआ है तौर-ए-बर्बादी जो बे-दस्तूर पहलू में
तलाश-ए-क़ब्र में यूँ घर से हम निकल के चले
नहीं करते वो बातें आलम-ए-रूया में भी हम से
नाहक़ ओ हक़ का उन्हें ख़ौफ़-ओ-ख़तर कुछ भी नहीं
कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
इश्क़ हो जाएगा मेरी दास्तान-ए-इश्क़ से
क़रीब-ए-मर्ग हूँ लिल्लाह आईना रख दो
किस के हाथों बिक गया किस के ख़रीदारों में हूँ
ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की