Ghazals of Ahmad Faraz (page 4)

Ghazals of Ahmad Faraz (page 4)
नामअहमद फ़राज़
अंग्रेज़ी नामAhmad Faraz
जन्म की तारीख1931
मौत की तिथि2008

हम भी शाएर थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

हर कोई तुर्रा-ए-पेचाक पहन कर निकला

हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे

हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे

हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो

गुमाँ यही है कि दिल ख़ुद उधर को जाता है

गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा

गिला फ़ुज़ूल था अहद-ए-वफ़ा के होते हुए

ग़ुरूर-ए-जाँ को मिरे यार बेच देते हैं

ग़नीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी

ग़ैरत-ए-इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी

फ़क़ीह-ए-शहर की मज्लिस से कुछ भला न हुआ

दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला

दिल-गिरफ़्ता ही सही बज़्म सजा ली जाए

दिल मुनाफ़िक़ था शब-ए-हिज्र में सोया कैसा

दिल बदन का शरीक-ए-हाल कहाँ

चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह

चल निकलती हैं ग़म-ए-यार से बातें क्या क्या

चाक-पैराहनी-ए-गुल को सबा जानती है

भेद पाएँ तो रह-ए-यार में गुम हो जाएँ

बैठे थे लोग पहलू-ब-पहलू पिए हुए

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी

अजब जुनून-ए-मसाफ़त में घर से निकला था

ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है

अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं

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