और 'फ़राज़' चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3615) Peoples Rate This
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
फ़क़ीह-ए-शहर की मज्लिस से कुछ भला न हुआ
दो घड़ी उस से रहो दूर तो यूँ लगता है
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
साक़ी ये ख़मोशी भी तो कुछ ग़ौर-तलब है
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया
'फ़राज़' तर्क-ए-तअल्लुक़ तो ख़ैर क्या होगा
सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं
जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले