हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
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हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे
ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
कर गए कूच कहाँ
तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही
रात भर हँसते हुए तारों ने
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
मैं रात टूट के रोया तो चैन से सोया