हो दूर इस तरह कि तिरा ग़म जुदा न हो
पास आ तो यूँ कि जैसे कभी तू मिला न हो
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ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
रात के पिछले पहर रोने के आदी रोए
वो सामने हैं मगर तिश्नगी नहीं जाती
जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का
रात भर हँसते हुए तारों ने
अब तिरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
जब भी दिल खोल के रोए होंगे
ये आलम शौक़ का देखा न जाए