Ghazals of Ahmad Kamal Parwazi
नाम | अहमद कमाल परवाज़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Kamal Parwazi |
कविताएं
Ghazal 15
Couplets 19
Love 14
Sad 8
Heart Broken 10
Bewafa 1
Friendship 2
Islamic 3
Social 1
देशभक्तिपूर्ण 1
बारिश 1
ख्वाब 2
Sharab 1
ज़रा ज़रा सी कई कश्तियाँ बना लेना
ये लग रहा है रग-ए-जाँ पे ला के छोड़ी है
ये गर्म रेत ये सहरा निभा के चलना है
वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है
तुम पे सूरज की किरन आए तो शक करता हूँ
तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ
तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ
तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं
शाम के ब'अद सितारों को सँभलने न दिया
रौशनी साँस ही ले ले तो ठहर जाता हूँ
फूल पर ओस का क़तरा भी ग़लत लगता है
मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ
कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है
बराए-ज़ेब उस को गौहर-ओ-अख़्तर नहीं लगता
अमल बर-वक़्त होना चाहिए था