Ghazals of Ahmad Kamal Parwazi

Ghazals of Ahmad Kamal Parwazi
नामअहमद कमाल परवाज़ी
अंग्रेज़ी नामAhmad Kamal Parwazi

ज़रा ज़रा सी कई कश्तियाँ बना लेना

ये लग रहा है रग-ए-जाँ पे ला के छोड़ी है

ये गर्म रेत ये सहरा निभा के चलना है

वो अब तिजारती पहलू निकाल लेता है

तुम पे सूरज की किरन आए तो शक करता हूँ

तुझ से बिछड़ूँ तो तिरी ज़ात का हिस्सा हो जाऊँ

तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ

तमाम भीड़ से आगे निकल के देखते हैं

शाम के ब'अद सितारों को सँभलने न दिया

रौशनी साँस ही ले ले तो ठहर जाता हूँ

फूल पर ओस का क़तरा भी ग़लत लगता है

मैं रंग-ए-आसमाँ कर के सुनहरी छोड़ देता हूँ

कँवारे आँसुओं से रात घाएल होती रहती है

बराए-ज़ेब उस को गौहर-ओ-अख़्तर नहीं लगता

अमल बर-वक़्त होना चाहिए था

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