मिरी इब्तिदा मिरी इंतिहा कहीं और है
मैं शुमारा-ए-माह-ओ-साल में नहीं आऊँगा
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(644) Peoples Rate This
उस से रिश्ता है अभी तक मेरा
उधर से आए तो फिर लौट कर नहीं गए हम
अंधेरा सा क्या था उबलता हुआ
उठ जा कि अब ये मौक़ा हाथों से जा रहेगा
किसी से क्या कहें सुनें अगर ग़ुबार हो गए
ज़ख़्म खाना ही जब मुक़द्दर हो
रक़्स-ए-शरर क्या अब के वहशत-नाक हुआ
अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं करना
उठिए कि फिर ये मौक़ा हाथों से जा रहेगा
गुम-शुदा मैं हूँ तो हर सम्त भी गुम है मुझ में
हम को आवारगी किस दश्त में लाई है कि अब