गुम-शुदा मैं हूँ तो हर सम्त भी गुम है मुझ में
देखता हूँ वो किधर ढूँडने जाता है मुझे
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यहीं गुम हुआ था कई बार मैं
नहीं आसमाँ तिरी चाल में नहीं आऊँगा
अब इस मकाँ में नया कोई दर नहीं करना
हम को आवारगी किस दश्त में लाई है कि अब
वो इक सवाल-ए-सितारा कि आसमान में था
सवाद-ए-शाम न रंग-ए-सहर को देखते हैं
दामन को ज़रा झटक तो देखो
अंधेरा सा क्या था उबलता हुआ
अपना सोचा हुआ अगर हो जाए
उधर से आए तो फिर लौट कर नहीं गए हम