मैं ने कहा कि देख ये मैं ये हवा ये रात
उस ने कहा कि मेरी पढ़ाई का वक़्त है
Wasi Shah
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1818) Peoples Rate This
यही दुनिया थी मगर आज भी यूँ लगता है
दुख की चीख़ें प्यार की सरगोशियाँ रह जाएँगी
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
अब वो गलियाँ वो मकाँ याद नहीं
तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ
रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए
शाम होती है तो याद आती है सारी बातें
रात फिर रंग पे थी उस के बदन की ख़ुशबू
वो वक़्त भी आता है जब आँखों में हमारी
पता अब तक नहीं बदला हमारा
ज़मीं से उगती है या आसमाँ से आती है
तिरे दीवाने हर रंग रहे तिरे ध्यान की जोत जगाए हुए