Ghazals of Akbar Hyderabadi

Ghazals of Akbar Hyderabadi
नामअकबर हैदराबादी
अंग्रेज़ी नामAkbar Hyderabadi
जन्म की तारीख1925

ज़िंदान-ए-सुब्ह-ओ-शाम में तू भी है मैं भी हूँ

ये कौन मेरी तिश्नगी बढ़ा बढ़ा के चल दिया

सितम-ज़दा कई बशर क़दम क़दम पे थे

सायों से भी डर जाते हैं कैसे कैसे लोग

निगह-ए-शौक़ से हुस्न-ए-गुल-ओ-गुलज़ार तो देख

कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था

जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है

जिन के नसीब में आब-ओ-दाना कम कम होता है

जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा

हाँ यही शहर मिरे ख़्वाबों का गहवारा था

घुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला

फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे

दूर तक बस इक धुँदलका गर्द-ए-तन्हाई का था

दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से

दहकते कुछ ख़याल हैं अजीब अजीब से

बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था

बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा

अता हुई किसे सनद नज़र नज़र की बात है

आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है

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