क़ब्र-ए-दर-ओ-दीवार से आगे निकले
हर साबित-ओ-सय्यार से आगे निकले
जौलाँ हुए हम जो बा-जलाल-ओ-जबरूत
आवाज़ की रफ़्तार से आगे निकले
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
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Parveen Shakir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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Javed Akhtar
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लबों पर तबस्सुम तो आँखों में आँसू थी धूप एक पल में तो इक पल में बारिश
बस इक तसलसुल-ए-तकरार-ए-क़ुर्ब-ओ-दूरी था
मुबहम थे सब नुक़ूश नक़ाबों की धुँद में
किस नहज से हम ने इक कहानी कह दी
अता हुई किसे सनद नज़र नज़र की बात है
चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही
सायों से भी डर जाते हैं कैसे कैसे लोग
सच्चा दिया
फ़ित्ने अजब तरह के समन-ज़ार से उठे
दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से