अब जी में है कि उन को भुला कर ही देख लें
वो बार बार याद जो आएँ तो क्या करें
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(680) Peoples Rate This
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
ग़म-ए-आक़िबत है न फ़िक्र-ए-ज़माना
रिंदों को बहिश्त की ख़बर दे साक़ी
पलट सी गई है ज़माने की काया
काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें
ज़मान-ए-हिज्र मिटे दौर-ए-वस्ल-ए-यार आए
यारो कू-ए-यार की बातें करें
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में
बदनाम हो रहा हूँ
एक हुस्न-फ़रोश से
ख़यालिस्तान-ए-हस्ती में अगर ग़म है ख़ुशी भी है
सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले