मैं फिर रहा हूँ शहर में सड़कों पे ग़ालिबन
आवाज़ दे के मुझ को मिरा घर पुकार ले
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(683) Peoples Rate This
लहू की सूखी हुई झील में उतर कर यूँ
बा'द मुद्दत के खुला जौहर-ए-नायाब मिरा
हर मोड़ पे सफ़र था अजब बोलने न पाए
ख़ुश्क आँखों से लहू फूट के रोना इक दिन
मैं जिस का मुंतज़िर हूँ वो मंज़र पुकार ले
लब क्या खुले कि क़ुव्वत-ए-गोयाई छिन गई
घर जल रहा था सब के लबों पर धुआँ सा था
सिसकता चीख़ता एहसास था मिरे अंदर
तेरे जमाल की दोशीज़गी की क़ौस-ए-क़ुज़ह
नाज़िल हुआ था शहर में काला अज़ाब एक