Islamic Poetry of Alimullah

Islamic Poetry of Alimullah
नामअलीमुल्लाह
अंग्रेज़ी नामAlimullah

यार के दरसन के ख़ातिर जान और तन भूल जा

यार जब नैनों में आया हू-ब-हू

तू है किस मंज़िल में तेरा बोल खाँ है दिल का ठार

रक़ीब-ए-नफ़्स का मुख मोड़ता रह

नूर-ए-हक़ बे-हिजाब इश्क़-अल्लाह

मुर्ग़ ज़ीरक अक़्ल का है इश्क़ का सय्याद शोख़

लगा कर इश्क़ का कजरा नयन को

जब पियारा गिला सुनाता है

इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम

इलाही बुलबुल-ए-गुलज़ार-मअनी कर लिसाँ मेरा

हुस्न का देख हर तरफ़ गुलज़ार

ग़फ़लत में सोया अब तिलक फिर होवेगा होश्यार कब

दया साक़ी लबालब मुझ को साग़र

'बहरी' पछाने नीं उसे गुल के सो वो दम-साज़ थे

अक़्ल-ए-जुज़वी छोड़ कर ऐ यार फ़िक्र-ए-कुल करो

अपने से बे-समझ को हक़ की कहाँ पछानत

अजब चंचल मिला है यार हमना

अबस क्यूँ उम्र सोने में गँवाया

अब तलक हक़ नहिं पछाने वाह-वाह

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